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विश्व महिला दिवस : ग्रामीण महिलायें की नजर से



विश्व महिला दिवस :   ग्रामीण महिलायें की नजर से


 
   8 मार्च को हर वर्ष की तरह विश्व महिला दिवस मनाया जाता है तो इस बार भी महिलाओं को एक दिनी सोन- चिड़िया बनाया गया। महिलाएं भी एक दिन की देवी बन कर खुश होती है। बड़े-बड़े  मीडिया हाउसों ने नामी-गिरामी महिलाओं को बुलाया, उनके जीवन की दास्तान सुनी। औऱ शहरी प्रजाति को एक अधूरा नैतिकता का पाठ पढ़ाने की कोशिश की।

अधूरा इसीलिए आज भी भारत गाँवो में बसता है। उसी ग्रामीण भारत मे एक लैंगिग समुह आज भी महिमामंडित  विश्व महिला दिवस की चकाचौंध से वंचित हैं। उनको तो ये भी नहीं पता कि इस नाम का भी कोई दिन होता है।

अगर उनको पता है तो वो वह है., कि गाय का घास आज कंहा से लाये, खाना बनाने के लिए लकड़ी कँहा से बीने औऱ सबसे बड़ी समस्या अपने दिल के टुकड़े , अपने बच्चे को अपनी साथ लेकर चले या किसी की निगरानी में छोड़े।

मैंने उन माँ को भी देखा है, जो अपने बच्चे को चादर में लेटाकर उसको पेड़ो से बांधती है। उनमें से बहुत से बच्चे दूध पीने वाले होते है।
खेत से लौटते वक्त एक हाथ से बच्चे को पकड़ा होता है , वही दूसरे हाथ से सिर पर रखा घास का गट्ठर ।
वास्तव में उसको सिर्फ घास का गट्ठर ही नहीं बल्कि एक औरत के ऊपर रखा दकियानूसी सामाजिक, पारिवारिक और शोषण का बोझ होता है।



आप कभी अगर पहाड़ो में गए होंगे तो वँहा जिस ऊँचाई से आपको पेड़ बड़े-बड़े पत्थर बौने जैसे दिखेंगे ,वँहा एक पहाड़ी महिला भी पशु चराती दिख ही जाएगी।
मगर दुख की बात तो यह है कि इनकी दास्तान , संघर्ष और जीवन से लड़ने की जनूनीयत शहरी भारत के आडम्बरपूर्ण प्रजाति को रास नही आती या उनकी नाक इतनी बड़ी हो गयी है कि उन्हें उसका कटने का डर है।
हमारे लोकतंत्र के चौथे पहरेदार भी TRP का रोना रोकर अपना पल्ला झाड़ लेते है, क्योंकि भाईसाहब उनका मंच गरिमामय जो होता है।
सरकार के बड़े बड़े मंत्री ट्विटर पर बधाई की चिड़िया उड़ाकर अपने हिस्से का काम खत्म कर देते है या बड़े बड़े कॉन्क्लेव(conclave) में जाकर महिलाओं को भाषण पिला आते है, औऱ वे ही नादान महिलाओं पर शारारिक हिंसा के केस(crime) से आभूषित होते है। 
हमारे प्रधानमंत्री एक दिन के लिए अपने सोशल मीडिया हैंडल महिलाओ को  समर्पित करते है।
लेकिन आधुनिकता से कोसों दूर एक ग्रामीण भारत भी जीत है, वँहा की महिलाओं को न तो फेसबुक का F पता है, न instagram का I  और न ही ट्विटर का T ।
तो प्रश्न उठता है, उनको ये बताएगा कौन?  
ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है भारत मे महिला शिक्षा दर 65.46% है। इनमे भी शहरी महिला ही ज्यादा है । तो बस एक छोटा सा काम है शिक्षा और स्वास्थ्य पर काम करो ,जिससे  सभी महिलायें एक मंच पर आ सके।फिर 
एक दिन ऐसा भी आये जब मेरे जैसा एक छोटा सा ब्लॉगर इन सब बातों से आगे लिखे।,किसी ओर समाजिक कमजोरी की ओर ध्यान दिलाये।


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