खेलो की दुनिया मे भी खिलाड़ियों के नाम और उनके चोचक कारनामे ऐसे भुला दिए जाते है,जैसे समुन्द्र की ऊंची लहरों का वापस पानी मे मिल जाना।
भारत के लिए भारोत्तोलन(वेटलिफ्टिंग) में पहला ओलंपिक पदक लाने वाली महिला खिलाड़ी कर्णम मल्लेश्वरी पर उक्त पंक्तियां सटीक बैठती है। आज इस प्रतिभाशाली ख़िलाडी के जीवन और उपलब्धि से एक खास तबका अनजान है। कर्णम मल्लेश्वरी का जन्म 1 जून,1975 को श्रीकाकुलम आंध्र प्रदेश में हुआ था। इनके पिता रेलवे में RPF में काम करते थे।
बालपन से इनकी प्रतिभा परिवार वालो को धरातल पर दिखने लगी थी। मोहल्ले के लड़के जिस काम को करने से कतराते थे। कर्णम उसको आसानी से कर लेती थी। भारी से भारी समान भी हवा की भांति इधर से उधर पटक देती थी।
प्रतिभा की पहचान
महज 12 साल की उम्र में इनके जीवन में सीढ़ी बने कोच नीलमशेट्टी अप्पन्न ,कर्णम ने कोच के निर्देशन में जमके मेहनत की और 1990 में अपनी बहन के साथ दिल्ली आ गयी। कुछ ही समय मे भारतीय खेल प्राधिकरण(Sports Authority of India) ने कर्णम के कौशल को पहचानना औऱ राष्ट्रीय कैम्प में उनका चयन हुआ।
कर्णम के जीवन का यादगार पल 1993 मेलबर्न विश्व चैंपियनशीप में आया जंहा उन्होंने कांस्य पदक का तमगा देश को समर्पित किया,अगले वर्ष 1994 इस्ताम्बुल (तुर्की) में विश्व चैंपियनशीप में देश को सोने(गोल्ड) से गौरव दिया।
इसके बाद कर्णम ने एशियाई खेलों में और वर्ल्ड चैंपियनशीप में मैडलो से देश की झोली भरती रही।
फिर सिडनी ओलंपिक में कर्णम मल्लेश्वरी ने कभी ना मिटने वाली लकीर दर्ज कराई। भारत के लिये भारत्तोलन में ओलम्पिक का पहला पदक (कांस्य) जीता था। यह कारनामा किसी महिला खिलाड़ी ने पहली दफा किया।
सम्मान और मेडल
1994 अर्जुन पुरस्कार
1999 राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार
1999 पदम श्री
कर्णम मल्लेश्वरी ने अपने करियर मे 29 अंतरष्ट्रीय मेडल जीते, जिनमे से 11 गोल्ड है।व
वर्तमान जीवन
1997 उन्होंने एक साथी वेटलिफ्टर राजेश त्यागी से शादी की और 2001 में एक बेटे को जन्म दिया। उसने 2002 के राष्ट्रमंडल खेलों में प्रतियोगिताओं में लौटने की योजना बनाई, लेकिन अपने पिता की मृत्यु के कारण वापस ले ली। 2004 के ओलंपिक में स्कोर करने में असफल रहने के बाद वह सेवानिवृत्त हुईं। वह वर्तमान में अपने पति के साथ यमुनानगर, हरियाणा में रहती हैं और भारतीय खाद्य निगम में मुख्य महाप्रबंधक (सामान्य प्रशासन) के रूप में काम करती हैं।
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