विश्व महिला दिवस : ग्रामीण महिलायें की नजर से 8 मार्च को हर वर्ष की तरह विश्व महिला दिवस मनाया जाता है तो इस बार भी महिलाओं को एक दिनी सोन- चिड़िया बनाया गया। महिलाएं भी एक दिन की देवी बन कर खुश होती है। बड़े-बड़े मीडिया हाउसों ने नामी-गिरामी महिलाओं को बुलाया, उनके जीवन की दास्तान सुनी। औऱ शहरी प्रजाति को एक अधूरा नैतिकता का पाठ पढ़ाने की कोशिश की। अधूरा इसीलिए आज भी भारत गाँवो में बसता है। उसी ग्रामीण भारत मे एक लैंगिग समुह आज भी महिमामंडित विश्व महिला दिवस की चकाचौंध से वंचित हैं। उनको तो ये भी नहीं पता कि इस नाम का भी कोई दिन होता है। अगर उनको पता है तो वो वह है., कि गाय का घास आज कंहा से लाये, खाना बनाने के लिए लकड़ी कँहा से बीने औऱ सबसे बड़ी समस्या अपने दिल के टुकड़े , अपने बच्चे को अपनी साथ लेकर चले या किसी की निगरानी में छोड़े। मैंने उन माँ को भी देखा है, जो अपने बच्चे को चादर में लेटाकर उसको पेड़ो से बांधती है। उनमें से बहुत से बच्चे दूध पीने वाले होते है। खेत से लौटते वक्त एक हाथ से बच्चे को पकड़ा होता है , वही दूसर...