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Showing posts from March, 2020

विश्व महिला दिवस : ग्रामीण महिलायें की नजर से

विश्व महिला दिवस :     ग्रामीण महिलायें की नजर से      8 मार्च को हर वर्ष की तरह विश्व महिला दिवस मनाया जाता है तो इस बार भी महिलाओं को एक दिनी सोन- चिड़िया बनाया गया। महिलाएं भी एक दिन की देवी बन कर खुश होती है। बड़े-बड़े  मीडिया हाउसों ने नामी-गिरामी महिलाओं को बुलाया, उनके जीवन की दास्तान सुनी। औऱ शहरी प्रजाति को एक अधूरा नैतिकता का पाठ पढ़ाने की कोशिश की। अधूरा इसीलिए आज भी भारत गाँवो में बसता है। उसी ग्रामीण भारत मे एक लैंगिग समुह आज भी महिमामंडित  विश्व महिला दिवस की चकाचौंध से वंचित हैं। उनको तो ये भी नहीं पता कि इस नाम का भी कोई दिन होता है। अगर उनको पता है तो वो वह है., कि गाय का घास आज कंहा से लाये, खाना बनाने के लिए लकड़ी कँहा से बीने औऱ सबसे बड़ी समस्या अपने दिल के टुकड़े , अपने बच्चे को अपनी साथ लेकर चले या किसी की निगरानी में छोड़े। मैंने उन माँ को भी देखा है, जो अपने बच्चे को चादर में लेटाकर उसको पेड़ो से बांधती है। उनमें से बहुत से बच्चे दूध पीने वाले होते है। खेत से लौटते वक्त एक हाथ से बच्चे को पकड़ा होता है , वही दूसर...

Being a wife of a Navodayan

* Being a wife of a Navodayan*                   It's been more than 13 years I have been married... to a Navodayan.... Ufff....क्या बताये... किसको बताये..... कैसे बताये.... How it is to marry a Navodayan.... Many times I told my husband that you all Navodayans should go to another planet... Find out one and whoever comes out of Navodaya should be sent to that planet.... 😜 Wanna share few things which I encountered in past (and will definitely face such situations in future tooo... 😀).... I always had that unexplained respect for NAVODAYA and thought only super intelligent rural boys and girls get qualified for that school..... I also tried when I was in my fifth standard and couldn't qualify and thought i am of not that standard.... It's not for me... But today I feel....THANK GOD.... I didn't qualify... 😄 I knew my husband was a Navodayan before our marriage and i had seen his handwriting before seeing him....साला.... धोक...

Karnam malleshwari : A legend sports women(olympic weightlifting championship). कर्णम मल्लेश्वरी

खेलो की दुनिया मे भी खिलाड़ियों के नाम और उनके चोचक कारनामे ऐसे भुला दिए जाते है,जैसे समुन्द्र की ऊंची लहरों का वापस पानी मे मिल जाना। भारत के लिए भारोत्तोलन(वेटलिफ्टिंग) में पहला ओलंपिक पदक लाने वाली महिला खिलाड़ी कर्णम मल्लेश्वरी पर उक्त पंक्तियां सटीक बैठती है। आज इस प्रतिभाशाली ख़िलाडी के जीवन और  उपलब्धि से एक खास तबका अनजान है। कर्णम मल्लेश्वरी का जन्म 1 जून,1975 को श्रीकाकुलम आंध्र प्रदेश में हुआ था।  इनके पिता रेलवे में RPF में काम करते थे। बालपन से इनकी प्रतिभा परिवार वालो को धरातल पर दिखने लगी थी। मोहल्ले के लड़के जिस काम को करने से कतराते थे। कर्णम उसको आसानी से कर लेती थी। भारी से भारी समान भी हवा की भांति इधर से उधर पटक देती थी। प्रतिभा की पहचान महज 12 साल की उम्र में इनके जीवन में सीढ़ी बने कोच नीलमशेट्टी अप्पन्न ,कर्णम ने कोच के निर्देशन में जमके मेहनत की और 1990 में अपनी बहन के साथ दिल्ली आ गयी। कुछ ही समय मे भारतीय खेल प्राधिकरण(Sports Authority of India) ने कर्णम के कौशल को पहचानना औऱ राष्ट्रीय कैम्प में उनका चयन हुआ। कर्णम के जीवन का यादग...

गाँव का शहरी रिश्ता village life

                               शहरी दृश्य Vs गाँव दृश्य   खुद कि लाश अपने कंधों पर उठाए हैं  ऐ शहर के बाशिंदों हम गांव से आए हैं।                                          अदम गोंडवी टीवी पर ऐड आया वाशिंग पाउडर निरमा सबकी पसंद निरमा गांव की औरतें मन ही मन सोच लिया करती थी, कि अगली बार कपड़े निरमा से ही धोने हैं। मुझे अपना बचपन अच्छे से याद है, वो बचपन कपड़ों के लिहाज  से मिट्टी से जुड़ा होता था मतलब मिट्टी और कपड़े की गहरी दोस्ती होती थी।   1991 के बाद शहरी व्यवस्था का वह दौर भी आया जब लोग सपने लेकर शहरों की चका-चौंध में चमकने के लिए शहरों में जाने लगे।  वँहा तो सीमेंट उद्योग व कॉंक्रीट के ढांचा में प्रत्यक्ष या यूं कहें एक जीजा और साले का रिश्ता हो गया था। मिट्टी के ढांचे, वन और भाईचारे की सोच शहरी संस्कृति के बीच हांफती नजर आई, या दूसरे शब्दो में हारी हुई अप...